Sunday, October 23, 2016

Mitti wale diye jalana

राष्ट्रीय हित का गाला घोंटकर छेद न करना थाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !

देश के धन को देश में रखना नहीं बहाना नाली में,
मिट्टी वाले दिए जलना अबकी बार दिवाली में !

बने जो अपनी मिट्टी से वो दिए बिके बाज़ारो में,
छुपी है वैज्ञानिकता अपने सभी तीज-त्योहारो में !

"चाइनीज़ झालर" से आकर्षित कीट पतंगे आते है,
जबकि दिए में जलकर बरसाती कीड़े मर जाते है !

कार्तिक दीपदान से बदले पितृदोष खुशहाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !

कार्तिक की अमावस वाली रात न अबकी काली हो,
दिए बनाने वालो के भी खुशियो भरी दिवाली हो !

अपने देश का पैसा जाए अपने भाई की झोली में,
गया जो दुश्मन देश में पैसा लगेगा राइफल गोली में !

देश की सीमा रहे सुरक्षित चूक न हो रखवाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !!

Saturday, August 27, 2016

bachpan wala sunday

*बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता*
90 का दूरदर्शन और हम -
1.संडे को सुबह-सुबह नहा-धोकर टीवी के सामने बैठ जाना..
2."रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना..
3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना..
4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना..
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना..
6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना..
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और कोसना...
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद करके खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना..
9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना...
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना...
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता,
दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घड़ी देखे,
अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
वो साइकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।।
जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुत्थियां, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।।
वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', 'ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।।
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
अब हर वार 'सोमवार' है
काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे;
बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...

छुप छुप के कही पोस्ट मेरी पढती होगी

छुप छुप के कही पोस्ट मेरी पढती होगी,
मेरी तस्वीरों से तंहाई मे लड़ती होगी ,
जब भी मेरी याद उसे आती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी....
किसी दुजे नाम से फेसबुक पे आई होगी,
ID कोई fake जरूर बनाई होगी,
कोई मुझमें कमी निकालेतो वो चिड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,
.मेरा हर अपडेट उसे अबभी युंही भाता होगा,
मेरा अक्स सामने उसके आही जाता होगा,
जब भी कोई बात उसकी बिगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,.
लगी मेरी गजलों की लत वो कैसे छुटेगी,
डरते -डरते रिक्वेस्ट मुझे भेजी होगी,
क्युं छोड़ा मुझे कहकर खुद से झगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,.
काश कहीं फिर से मिलजाए मुझे,
आकर फिर वही प्यार की बात चलाए मुझे,
सोच यही मंदिरों में माथा रगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी.....

Wednesday, June 1, 2016

Ek shakhs tha

हकीकत में नहीं अक्सर ख्वाबों में ही आता था,
एक शख्स था, सवाल सा, जवाबों में ही आता था।
उसका रिश्ते निभाने का एक अजब ही लहजा था,
रिश्ता वो भी एक लाजवाबों में ही आता था।
बहुत नुकसान हुआ था उसके जाने पर कुछ दूर मुझे,
फायदा बस एक था, वो यादों में ही आता था।
'आकाश' से नज़रे रोज़ मिलाकर पूछता है मौसम को,
अंदाज ही कुछ ऐसा था, बरसातों में ही आता था!

Wednesday, May 18, 2016

Meri Maa

आँखों में आँसू, होंठों पर दुआ,
दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ--
देखती है स्कूल जाते नन्हें बच्चों में मुझे अब भी,
जानती हूँ कि बहुत दूर हूँ उससे, मैं
फिर भी, घर वापस आते बच्चों में
ढूँढ़ती हैं उसकी आँखें मुझे
अभी भी, हर रोज़
सँवारती है मेरी एक-एक चीज़
करती हुई पिता जी से मेरे बचपन की बातें
दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ।
सो जाने पर प्यार से सहलाती मेरे सिर को,
छुपाती है अपने हर ग़म
मुझे देख मुस्कराती
दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ।
पत्थर के देवताओं से
कई-कई दिन भूखी-प्यासी रहकर भी
माँगती है मेरी लम्बी उम्र के लिए दुआ
आसमान से भी ज़्यादा अपनी बाहें फैलाए
करती है मुझे प्यार,
सागर से भी प्यारी आँसू छलकाती
दरवाज़ें पर इन्तज़ार करती मेरी माँ।

Shadi ka mausam

अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…

डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को ऑफिस भी है जाना…

घरवाली भगवान का रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…

५ साल बाद……..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…

सुनो एक बार फिर वोही आवाज आयी,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…

ना जाने घरवाली कैसा रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…

क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुंवारे हो जायेंगे !