Thursday, November 9, 2017

हम भारत एक बनायेगे

तुम जितना कीचड़ डालोगे हम उतने कमल खिलाएंगे। तुम जाती विभाजन में लगे रहो, हम भारत एक बनायेंगे।।

तुम घोटालों के बादशाह, हम भारत स्वच्छ बनाएंगे। तुम ग़ुलामी के आदी हो, हम नई विचारधारा लाएंगे।।

तुम अकबर की करो इबादत, हम अशोक महान बताएंगे।
तुम वामियों द्वारा लिखित इतिहास मे क्या ख़ाक देशभक्ति पाओगे।।

तुम बाबर के घोर प्रशंसक,हम भीम पार्थ के अनुगामी। तुम लूटमार में सिद्धहस्त,हम पृथ्वी से जीवनदानी।।

हम वीर शिवा के वंशज है,तुम अफजल वाली धुरी हो। हम मातृभुमि पर शीश चढाते ,तुम कपट बगल की छूरी हो।।

तुम गद्दारो के हाथो बिक देश की बली चढाओगे।
हम अमरसिंह के अनुगामी से अपना शीश कटवाओगे।।

तुम नफरत के बीज बिखेरोगे हम प्रेम की फसल उगायेंगे।
गद्दारो के फन कुचलकर हम देश का कर्ज चुकायेंगे।।

तुम टीपू की महिमा गाते, महिषासुर जयंती मनाते हो। हम बोस आज़ाद की कुर्बानी जन गण मन पहुंचाएंगे।।

तुम जितनी चाहे साजिश रच लो हम जीत का विगुल बजायेंगे।
कश्मीर से लेकर केरल तक हम भारत एक बनायेंगे।।

तुम जाति धर्म में बांटे हमको, पर हम एक थाली में खाएंगे।
हिन्दू हो या हो मुस्लिम,  हम भारत एक बनायेंगे।।

देश पर आती आंच को हम सीने से लगाएंगे।
नहीं बटेंगे टुकड़ों में खुद मिटना पड़े चाहे देश की खातिर हँसकर मिट जाएंगे।।

तुम देश मे दंगे करते हो, हम अमन की गंगा बहाएंगे । तुम लाल हरे रंग में बांटोगे, हम मिलकर तिरंगा लहरायेंगे ।।

ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र सब छोड़ देश को जाएँगे। आर्यवृत्त की गरिमा को हम अम्बर तक ले जाएंगे।।

आचार्य चाणक्य के सपने को मोदी से पूर्ण कराएंगे। खुद भी एक रहेंगे और  हम भारत एक बनायेंगे।।

तुम तिरंगे का करो अपमान, हम खड़े होकर राष्ट्रगान गाएंगे।
लाख जतन कर लो खंडन की, हम भारत एक बनायेंगे।।

तुम अन्धकार के पोषक हो, हम सूरज ही ले आयेंगे। कतरा कतरा लहू जोड़, हम भारत एक बनायेगे।।

आओ एक प्रण करते कि हम भारत एक बनायेगे

Monday, September 4, 2017

थोडा थक गया हूँ

थोडा थक गया हूँ,
दूर निकलना छोड दिया है।
पर ऐसा नही है,की मैंने
चलना छोड दिया है।।

     फासले अक्सर रिश्तों में,
     दूरी बढ़ा देते हैं।
     पर ऐसा नही है कि मैने अपनों
     से मिलना छोड दिया है।।

हाँ...ज़रा अकेला हूँ दुनिया
की भीड में।
पर ऐसा नही की मैने
अपनापन छोड दिया है।।

    याद करता हूँ अपनों की
    परवाह भी है मन में।
    बस कितना करता हूँ ये
    बताना छोड दिया।।
         

Saturday, September 2, 2017

बचपन

बचपन लौट के नही आता।
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥

बचपन के अजब रंग थे ।
दोस्त और मस्ती के संग थे॥

आम के पेड़ अमरूद की डाली ।
बेरों के कांटे मकड़ी की जाली॥

पापा की डांट मम्मी का प्यार।
छोटा सा बछड़ा था अपना यार॥

बारिश का पानी डूबे कीचड़ में पाँव।
बारिश के पानी में कागज की नाव।।

गुल्ली व डंडो का प्यारा सा खेल।
चोर सिपाही में होती थी जेल॥

बचपन लौट के नही आता।
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥

Monday, August 21, 2017

पुराने शहरों के मंज़र

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं

Sunday, August 20, 2017

सब दोस्त थकने लगे है.

दोस्त अब थकने लगे है

किसीका पेट निकल आया है,
किसीके बाल पकने लगे है...

सब पर भारी ज़िम्मेदारी है,
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है।

दिनभर जो भागते दौड़ते थे,
वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है।

पर ये हकीकत है,
सब दोस्त थकने लगे है...1

किसी को लोन की फ़िक्र है,
कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है।

फुर्सत की सब को कमी है,
आँखों में अजीब सी नमीं है।

कल जो प्यार के ख़त लिखते थे,
आज बीमे के फार्म भरने में लगे है।

पर ये हकीकत है
सब दोस्त थकने लगे है....2

देख कर पुरानी तस्वीरें,
आज जी भर आता है।

क्या अजीब शै है ये वक़्त भी,
किस तरहा ये गुज़र जाता है।

कल का जवान दोस्त मेरा,
आज अधेड़ नज़र आता है...

ख़्वाब सजाते थे जो कभी ,
आज गुज़रे दिनों में खोने लगे है।

पर ये हकीकत है
सब दोस्त थकने लगे है...

Friday, August 18, 2017

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है…
आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है..

अपने घर की कलह से फुरसत मिले तो सुने…
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..

खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को..
आज कल परिंदों मे जान कौन रखता है..

हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आज कल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..

बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां_बाप को…
आज कल घर में पुराना सामान कौन रखता है…

सबको दिखता है दूसरों में इक बेईमान इंसान…
खुद के भीतर मगर अब ईमान कौन रखता है…

फिजूल बातों पे सभी करते हैं वाह-वाह..
अच्छी बातों के लिये अब जुबान कौन रखता है...!!✍

Tuesday, August 15, 2017

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।।